आवरण
कथा
" साई गीता और मेरे
संबंधों में शुरू से ही घनिष्टता रही है।ये संबंध शुद्ध रूप से
आत्मीय थे । "
ये मर्मस्पर्शी शब्द स्वामी ने 7 जून 2007 को अपने विश्वविद्यालय के छात्रों और
कर्मचारियों के बीच एक असार्वजनिक सभा में कहे ; सुनते ही सभागार में गहरा ,पूर्णरूप
से अभेद्य सन्नाटा छा गया । वे बोले ,“ यह
मत सोचो कि साई गीता की बात करते समय मैं भावुक हो जाता हूं ।” उनका
स्वर अस्थिर और उत्कट संवेदना से अभिभूत था । स्वामी की उस
गंभीर मुद्रा को देखकर सबका हृदय डूबने लगा, इतना भारीपन लगने लगा कि नाजुक दिल की धड़कन ही रूक
जाये । प्रत्येक के मन में ,
ऐसी गहरी शून्यता महसूस होने लगी जिसमें जीवन का अस्तिव ही समा जाये ।