पहली कड़ी - अंक - ०१
नवम्बर २००८ |
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अदृश्य माधुर्य भगवान की सेवा करते हुये जैसे अच्छे माध्यम से जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने का अवसर केवल मनुष्य के पास है पर अज्ञानता या उससे भी बहतर क्या कहें, विकृत बुद्धि के कारण वह इस अवसर से चूक जाता है और अनंत काल तक कष्ट तथा दुख, भय तथा चिंता का अनुभव करते रहता हैं ।
भगवान से प्रार्थना करो कि वह इस निश्चय को तुममें सुदृढ़ करें । वह तुम्हारी आँखे, खोलकर सत्य को स्पष्ट करेगा कि वही सनातन सारथी है और सभी का सारथी है । यह रहस्योद्धाटन तुम्हें अतुलनीय आनंद प्रदान करेगा और सृष्टि के अनेकता से तुम्हारा संबंध तुम्हें प्रदान करेगा । ठीक यही कारण है कि महाभारत में जब दुर्योधन ने कृष्ण से पाँडवों के विरूद्ध सहायता माँगी तो कृष्ण ने कहा - '' यदि तुम पाँडवों से धृणा करते हो, तो तुम मुझ से धृणा करते हो, क्यों कि उन्होने मुझे अपने जीवन का श्वास माना है '' । उसे ही अपना बल, अपनी श्वास, अपनी बुद्धि और अपना आनंद समझो - तब वह वहीं और उससे भी अधिक सिद्ध होगा । तब तुम्हारी कोई भी क्षमता तुम्हारी आध्यात्मिक उन्नति नहीं रोक सकेगी । वह सभी तुम्हारी क्षमताओं को, तुम्हारे अधचेतना को, तुम्हारी बुद्धि को, सभी को तुम्हारे गन्तव्य के प्रति लक्षित करेगा । भगवान की कृपा तुम्हें जो कुछ भी चाहिये वह देगी ।
मतभेद या अंतर को अधिक मूल्य देकर किसी से झगडा मत करो भ्रातृत्व जो कि प्रेम का आधार है, उसे ही मूल्य दो जिस प्रकार एक कप पानी में घुले हुये शक्कर को तुम देख नहीं सकते, पर स्वाद द्वारा हर बूंद में उसकी विघमानता का अनुभव होता है, उसी प्रकार दिव्यत्व सर्वत्र विद्यमान हैं । उसका अनुभव हर व्यक्ति में किया जा सकता है, चाहे वह नीचे हो या ऊपर हो । नामस्मरण करते रहो । हर व्यक्ति के ह्दय में स्थित उस हृदयेश्वर के माधुर्य का अनुभव करो । उसकी महानता को समझो उसकी करूणा का बखान करने वाले नामों में ध्यान केंद्रिकृत करो । तब सभी में उसको देखने, सभी में उसी को मानकर प्रेम करने तथा सभी में उसी की आराधना करने में तुम्हें सहूलियत होगी । - सत्य साई वचन , 31-7-1967 |
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पहली कड़ी - अंक - ०१
नवम्बर २००८ |
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