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अदृश्य माधुर्य
भगवान की सेवा करते हुये जैसे अच्छे माध्यम से जन्म मरण के चक्र से मुक्त
होने का अवसर केवल मनुष्य के पास है पर अज्ञानता या उससे भी बहतर क्या कहें,
विकृत बुद्धि के कारण वह इस अवसर से चूक जाता है और अनंत
काल तक कष्ट तथा दुख, भय तथा चिंता का अनुभव करते
रहता हैं ।
भौतिक वस्तुओं के आकर्षण की पकङ से तथा भौतिक सुखों
से बचकर ही व्यक्ति अपने आप को मुक्त कर सकता है । गलत रास्ते पर वह अब
तक बहुत समय तक चल चुका है अब वह समय आ गया है जब उसे पीछे मुङ कर
अपने गंतव्य की ओर धीरे धीरे चलना चाहिये जो भी प्रेम व्यक्तियों के
प्रति अथवा वस्तुओं के प्रति अब तक संजोया गया है,
उसे भगवान के प्रति आराधना के रूप में ऊर्ध्वागमन
करवाना चाहिये तब वह भक्ति में परिणित होगी ।
अपने आप को आश्वस्त करो कि तुममें जो भगवान विद्यमान है,
वह सारथी के रूप में पँचेन्द्रियों की लगाम पकङे
हुये तुम्हे निरंतर प्रेरित कर परामर्श दे रहा है,
ठीक उसी प्रकार जैसे कि महाभारत में अर्जुन को उसके
प्रार्थना करने पर दिया था । तब तुम्हारे लिये यह आश्वस्त होना भी सरल
होगा कि वही सारथी सभी अन्य लोगों तथा प्राणियों को भी अभिप्रेरित कर
रहा है । जब इस विश्वास को गहराई से अपने आप में स्थापित करोगे तो तुम
धृणा,विद्वेश,लोभ
, ईष्या,
क्रोध
तथा रोग से मुक्त अनुभव करोगे ।
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भगवान से प्रार्थना करो कि वह इस निश्चय को तुममें सुदृढ़
करें । वह तुम्हारी आँखे, खोलकर सत्य को स्पष्ट
करेगा कि वही सनातन सारथी है और सभी का सारथी है । यह रहस्योद्धाटन तुम्हें
अतुलनीय आनंद प्रदान करेगा और सृष्टि के अनेकता से तुम्हारा संबंध तुम्हें
प्रदान करेगा । ठीक यही कारण है कि महाभारत में जब दुर्योधन ने कृष्ण से
पाँडवों के विरूद्ध सहायता माँगी तो कृष्ण ने कहा - ''
यदि तुम पाँडवों से धृणा करते हो,
तो तुम मुझ से धृणा करते हो,
क्यों कि उन्होने मुझे अपने जीवन का श्वास माना है ''
। उसे ही अपना बल, अपनी श्वास,
अपनी बुद्धि और अपना आनंद समझो -
तब वह वहीं और उससे भी अधिक सिद्ध होगा । तब तुम्हारी कोई
भी क्षमता तुम्हारी आध्यात्मिक उन्नति नहीं रोक सकेगी । वह सभी तुम्हारी
क्षमताओं को, तुम्हारे अधचेतना को,
तुम्हारी बुद्धि को, सभी को
तुम्हारे गन्तव्य के प्रति लक्षित करेगा । भगवान की कृपा तुम्हें जो कुछ भी
चाहिये वह देगी ।
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केवल कृपा माँगो
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वह सब कुछ प्रदान करेगी
एक
सास अपनी नवागता वधु के विरूद्ध शिकायत कर रही थी कि वह दूध,
दही, मलाई,
माखन तथा घी चुरा कर खा पी लेती थी । उस वघु के भाई,ने
जब सास की शिकायत सुनी तो अपनी बहिन को उस वृद्ध महिला के समक्ष
बुलाकर उसे फटकारने जैसे व्यवहार में कहा कि इन सभी चीजों की चोरी करना
तुम छोड़ दो केवल दूध पिया करो । उसने कहा कि तुम जितना चाहे उतना दूध
पियो । इन दूध के उत्पादनो की तुम क्यों चोरी करती हो ?
कहने की जरूरत नही है कि उस सास को यह सलाह अच्छी
नहीं लगी होगी । अत: कृपा मांगो -
वह सब कुछ प्रदान कर देगा तुम्हें । सभी के प्रति
प्रेम को जागृत करना चाहिये इस बात के वनिस्बत कि हर व्यक्ति का सामर्थ
और चरित्र चाहे जो कुछ भी हो । सारे शरीर में एक ही रक्त बहता है पर
आंखों से गंध नहीं लिया जा सकता , कानो से
स्वाद नही लिया जा सकता, नाक से देखा नही जा
सकता । |
मतभेद या अंतर को अधिक मूल्य देकर किसी से झगडा मत करो भ्रातृत्व जो कि
प्रेम का आधार है, उसे ही
मूल्य दो जिस प्रकार एक कप पानी में घुले हुये शक्कर को तुम देख नहीं
सकते, पर स्वाद द्वारा हर बूंद में उसकी
विघमानता का अनुभव होता है, उसी प्रकार
दिव्यत्व सर्वत्र विद्यमान हैं । उसका अनुभव हर व्यक्ति में किया जा
सकता है, चाहे वह नीचे हो या ऊपर हो ।
नामस्मरण करते रहो । हर व्यक्ति के ह्दय में स्थित उस हृदयेश्वर के
माधुर्य का अनुभव करो । उसकी महानता को समझो उसकी करूणा का बखान करने
वाले नामों में ध्यान केंद्रिकृत करो । तब सभी में उसको देखने,
सभी में उसी को मानकर प्रेम करने तथा सभी में उसी
की आराधना करने में तुम्हें सहूलियत होगी ।
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सत्य साई वचन ,
31-7-1967
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